SHIV OM SAI TRUST

Kashi Marnanmukti

Author: Manoj Thakkar & Rashmi Chhazed.

From the tender age of thirteen Mahamrinangam (Maha) makes the burning of funeral pyres as an executioner at the Manikarnika, the great cremation ground of Kashi (Varanasi), his practicing of austerities. Staying in Kashi reveals upon Maha the mysteries of the five elements, while Kabir and Tulsidas, the mystic and the great poet, engulfing his dreams and thoughts elucidate the manifest and unmanifest paths to God. But in a moment of great ignorance, and under the influence of Maya, Maha decides to leave Kashi. The journey that thence unfolds takes him to the zenith of that spiritual practice where everything is non-dual, and where this dweller of the crematory attains oneness with Lord Shiva, the KashiVishwanath — Kashi's Lord of the Universe, sovereign of the great crematorium. It is a peaceful mind and not the disciplined one that can understand the true meaning of creation because creation is possible only in a state of absolute freedom, and freedom is the birth child of peace. God has been creating and destroying infinite things through infinite years together, and it is an art. Thus, to understand God in terms of infinity one will have to create a minute part of its infinity as God only, and this book is nothing but a very minute part of that infinite blessing where Thou descended for a few moments in that absolute freedom of a peaceful mind, and where the author, the book and the process of writing became One.

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Publisher Shiv Om Sai Prakashan

Released 2011

Language Hindi

Binding Paperback

Edition 3rd Edition

ISBN-10 8191092721

ISBN-13 9788191092721

Pages 512


Price in (Rs.) 360


More about the authors

Book Reviews

  • सुनील कुमार वर्मा ' मुसाफिर ' , इंदौर

    शमशान वैराग्य एवं इस वैराग्य के माध्मय से मोक्ष पर यह रचना एक तरह से अतुलनीय, अप्रतिम एवं अवर्णनीय है। चाण्डाल से शिवत्व प्राप्त होने की अनोखी कथा है।... आगे पढ़ें »

  • हस्तीमल झेलावट (एडव्होकेट) , इंदौर

    सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् एक ही रूप में स्पष्ट प्रतित होता है। ब्रहमा, विष्णु, महेश एक ही आकृति में पुस्तक की परिभाषा में झलकता है। यह अपने आप में ग्रंथ है, और इसे ‘पंथ‘ भी कह सकते है।... आगे पढ़ें »

  • स्नेहलता व्यास , इंदौर

    मणिकर्णिका को साधक से जोड़कर स्वर्ण-सीढ़ी बना देने की गरिमा श्री मनोज ठक्कर के अतिरिक्त आज तक तो मैंने नहीं देखी।... आगे पढ़ें »

  • दिव्य हिमाचल, १८ जुलाई २०११

    अलौकिक शक्तियों के रहस्याभास, परा अनुभूतियों और उनसे उत्पन्न संवेगों पर इतने अधिकार से लिखना आसान नहीं है इसके लिये इन विषयों के गहरें अध्यन के साथ ही ऐसी अनुभुतियों का स्वयं साक्षात्कार भी होना चाहिए।... आगे पढ़ें »

  • डा. श्रीकांत उपाध्याय, पुणे
  • दैनिक जागरण

    हम स्वयं जीकर जीवन को सीख और सिखा सकते है और मृत्यु से मित्रता भी कर सकते है। परन्तु किसी को मृत्यु ऐसे नहीं सिखा सकते जैसे जीना। काशी में मुक्ती विषयवस्तु पर लिखे गए उपन्यास ‘काशी मरणान्मुक्ति ‘ में भी इस संदेष को कथासूत्र के रूप में पेश किया गया है।... आगे पढ़ें »

  • दैनिक नव-ज्योति, ११ सितम्बर २०११

    केवल मस्तिष्क को झकझोरने वाला नहीं अपितु आत्मा को जाग्रत कर देने वाला उपन्यास है ‘काशी मरणान्मुक्ति‘।... आगे पढ़ें »

  • प्रभात खबर, २५ सितम्बर २०११

    इस पुस्तक में काशी के उस रूप की विस्तार से व्याख्या की गई है, जो बाकी किताबों में शायद ही मिले I इसमें धर्म-अध्यात्म के साथ शिव की बारह सिद्धपीठों का विवरण है, बल्कि कबीर की निर्गुण धारा का भी बखान है... आगे पढ़ें »

  • डा. हेमलता दीक्षित, इंदौर

    उपन्यास काशी मरणान्मुक्ति गुरु - शिष्य के अध्यात्मिक सम्बन्ध पर आधारित है, जिसके मूल में श्रद्धा हैI नायक एक चांडाल है जो अपने गुरु और इश्वर के प्रति असीम श्रद्धा रखता है और श्रद्धा का सम्बन्ध मन और भावना से होता है, कर्म से नहीं... आगे पढ़ें »

  • श्री जे. पी. सती, धर्माधिकारी, बद्रीनाथ धाम, हिमालय

    श्री मनोज जी ठक्कर ने जिस प्रकार अध्यात्म की विवेचना की उसकी जितनी प्रसंशा की जाए, कम ही होगी, जिस प्रकार भगवन वेद व्यास बद्रिकाश्रम में समाधिस्थ होकर श्रीमद भगवत महापुराण के माध्यम से कृष्णतत्व सुक्ष्म... आगे पढ़ें »

  • अनिल मिश्रा, मुंबई
  • पंजाब केसरी
  • ऋषभ उवाच, साहित्य : सृजन और समीक्षा

    इसे पौराणिक उपन्यास भी कहा जा सकता है और औपन्यासिक पुराण भीI किन्तु कथानक का पूरा जीवन इसमें होते हुए भी उसकी कथा बहुत सूक्ष्म सी है - एकार्थ काव्यों की तरह। इस कथा को लेखकद्वय ने मुख्यतः शिव पुराण और गौणतः अन्य पुराणों के प्रसंगों के सहारे बुना है।... आगे पढ़ें »

  • दैनिक भास्कर, २७ नवंबर २०११

    पूरी कथा अत्यंत रोचक और दिलचस्प अंदाज में कही गई है। हमारे पांरपरिक ज्ञान के आधुनिक हिन्दी भाष्य बहुत कम हुऐ है, यह कृति उस कमी को एक हद तक दूर करती है।... आगे पढ़ें »

  • नव भारत टाइम्स (इन न्यू बुक कॉलम)

    कथा के कलेवर में पौराणिक दर्शन और मान्यताओं को जिस सहजता से यहाँ पेश किया गया है , वह इस मोक्ष कथा को नितांत तांत्रिक - क्रियाविधि होने से भी बचाता है।... आगे पढ़ें »

  • जनपथ समाचार, सिलीगुड़ी ११ मार्च २०१२
  • अमर उजाला, १३ अप्रैल २०१२

    साधन ही नहीं उसका संकल्प भी साधक को आत्मदर्शन करा देता है।... आगे पढ़ें »

  • हिन्दी मिलाप, रविवार, १५ अप्रेल, २०१२

    शगुण-निर्गुण विचार धारा के मध्य व्याप्त झीनी किन्ती शाश्वत अभिन्नता को बताती यह कालजयी रचना द्वैत से अद्वैत की महायात्रा करवाती है।... आगे पढ़ें »

  • नव सृजन, १५ अप्रेल २०१२
  • इंडिया टुडे, १५ अप्रेल २०१२

    यह काशी पर एक ऐसा उपन्यास है, जो अध्यात्म, दर्शन और रहस्य के तत्वों से भरा हुआ है। अलौकिक शक्तियों का रहस्याभास करता हुआ। आखिर संसार का सर्वोच्च तीर्थ तो हमारी काया ही है, काया और काशी में अंतर ही कहाँ है।... आगे पढ़ें »

  • नव भारत, १५ अप्रेल २०१२

    मैं तो ये उपन्यास पढ़ने के पश्चात यह अनुभव कर रहा था कि, जैसें मैंने गंगा मैया के पावन जल से स्त्रान कर काशीपति के दर्षन किये, घर बैठे ही।... आगे पढ़ें »

  • श्रीमति नीलिमा गुंजन

    यह किताब निश्चित ही वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियों के लिए परमात्मा के साकार व निराकार रूप को समझने में सहयोग करेगी। लेखक ने गुरु की महिमा गान का कोई भी अवसर नहीं छोड़ा, और गुरु की महत्ता को लेखिनी में लेन का सुअवसर दूढ़ लिया।... आगे पढ़ें »

  • (त्रेमसिक) लोक यज्ञ

    जीवन का अर्थ है- शरीरधारी में, मानव में, प्राणों का असतित्व, उसके जन्म से मृत्यु तक का काल। जीवन गतिशील है, वह एक यात्रा है, जिसका आरम्भ जन्म है और मंजिल मृत्यु उस मंजिल जीवन के अंतिम क्षण मृत्यु को सुखद, शान्तिमय, निश्चित, अच्छा बनाने के लिये मनुष्य जीना होगा- अच्छी तरह जीना होगा। अंतः जीवन की गति जीने, अच्छी तरह जीने में है। सौं पुस्तके पढ़ने से अच्छा है एक आत्मा को प्रकाशित करने वाली पुस्तक पढ़ना।... आगे पढ़ें »

  • जन जन तक (मासिक पत्रिका, नई दिल्ली)

    आध्यात्मिक उपन्यासों में रूचि रखने वाले लोगो के लिए ये एक उपहार है। उपन्यास में महा की मोक्ष रुपी इच्छा तथा काशी में अंततः मोक्ष प्राप्ति को बहुत अच्छी तरह वर्णित किया गया है।... आगे पढ़ें »

  • अपनी माटी (वेब पत्रिका)

    इस उपन्यास का खासियत इसमें निहित दार्शनिक चिन्तन है, लेखक द्वय का प्रगाढ़ चिन्तन इसमें अभिव्यक्त हुआ है। जहाँ आत्मतत्व का प्रकाश-स्त्रोत, आध्यात्मिक मुक्ति का कथारूप, रोमांचकारी परिस्थिति निर्माण व कल्पना का सौन्दर्यमयी शब्दावली में चित्रण करते हुए ‘काशी’ को महिमामण्डित करने का अनूठा प्रयास है।... आगे पढ़ें »

  • राष्ट्रीय हिन्दी मैल

    हमारे धर्म, दर्शन, अध्यात्म और जीवन के रहस्यों से परिपूर्ण यह पुस्तक उच्च कोटि की हिंदी की अनूठी और संग्रहणीय है। समकालीन हिंदी लेखन में यह किताब सबसे अलग है। यह पुस्तक हिंदी के श्रेष्ठ कथा साहित्य में दर्ज की जाएगी।... आगे पढ़ें »

  • लोकेश चंद्र एम.पी.
  • एक्सप्रेस न्यूज़, भोपाल

    पढ़ने वाला उपन्यासिक पद्धति में प्रस्तुत सामाग्री का सागापांग अध्ययन करने के बाद सृष्टि के उद्भव, स्थिति और संहारकर्ता स्वयंभू भगवान शिव के अनेक रूपों का दर्शन करते हुए उपन्यास के कथानकों को कश्य और अकश्य के बीच वेतरणीय गंगा में ढूबता उतराता है और उस परम् सत्य को जान पाता है, जिसमें मान्यता है कि, सृष्टि के कण-कण का निर्माण शिव ही करते है और सृष्टि के अंत में समूची सृष्टि उन्हीं शिव रूप में समा जाती है।... आगे पढ़ें »

  • कादंबिनी
  • द संडे इंडियन

    पूरी कथा महा के मोक्ष की यात्रा है, अनेक प्रसंगो से इस ओर इशारा किया गया है कि महा में शिवत्व है, सत्य, गुरू ज्ञान की खोज में महा चारों धाम और बारह ज्योर्तिलिंगों की यात्रा करता है पर अन्ततः काशी आकर उसे ज्ञान प्राप्त होता है, वह काया को काशी मानकर भीतर के शिव को पहचान लेता है, यहीं वह मरणान्मुक्ति को प्राप्त होता है।... आगे पढ़ें »

  • कालवर्धन मेगज़ीन

    इस पुस्तक में जीवन के बहुमूल्य तत्व समाहित है। सगुण और निर्गुण ईश्वर से साक्षात्कार इस पुस्तक को पढ़कर हो जाता है। कहानी में जहाँ धार्मिकता है वहीं अध्यात्मिकता भी दृष्टिगत होती है। जीवन का अभूत दर्शन इस कहानी में देखने को मिलता है।... आगे पढ़ें »

  • पांचजन्य

    इस कृति से जहां एक ओर वेदों-पुराणों, में पूजनीय और पवित्र मानी गई काशी नगरी के महात्म्य को पुनः सिद्ध किया गया है, वहीं दूसरी ओर यह कृति धार्मिक संकीर्णताओं से भी उबारने का कार्य करती है।... आगे पढ़ें »

  • दबंग दुनिया

    लेखकद्वय ने इस उपन्यास में विभिन्न शास्त्रों को निचोड़ पाठकों के समक्ष विविध सुरचिकर व्यंजनों के रूप में परोसा है। पढ़ने वाला उपन्यासिक पद्धति में प्रस्तुत सामग्री का सांगोपांग अध्ययन करने के बाद सृष्टि के उद्भव, स्थिति और संहारकर्ता स्वयंभू भगवन शिव के अनेक रूपों का दर्शन करते हुए उपन्यास के कथानकों कश्य और अकश्य के बीच वैतरिणी गंगा में डूबता-उतरता है और उस परम सत्य को जान पाता जिसमे मान्यता है कि सृष्टि के कण-कण का निर्माण शिव ही करते है और सृष्टि के अंत में समूची सृष्टि उन्ही शिव रूप में समा जाती है।... आगे पढ़ें »

  • द लखनऊ मिरर मेगज़ीन

    पुस्तक में देवों के देव महादेव के सभी रूपों का पुनःप्रतिपादन किया गया है। साथ ही कई देवों के कई अन्य रूपों को भी विभिन्न मंदिरों आदि में प्रकाशित किया गया है। वह निर्वाध साधना व शव चिताग्नि साधना विसर्जन आदि एक शिव पूजन रूप में करता है।... आगे पढ़ें »

  • लोक तेज, सूरत

    ‘काशी मरणान्मुक्ति‘ के रचियता मनोज ठक्कर तथा रश्मि छाजेड़ है, जिननें इस अनुपमेय ग्रन्थ में विभिन्न शास्त्रों का निचोड़ पाठकों के समक्ष विविध सुरचिकर व्यंजनों के रूप में परोसा है।... आगे पढ़ें »

  • हरी भूमि
  • श्री विरेश कुमार

    यह कहा जा सकता है कि, अहिन्दी भाषी लेखकद्वय द्वारा प्रस्तुत यह कृति मूल हिन्दी भाषियों के लिए भी एक आदर्ष प्रस्तुत करती है। हर दृष्टि से यह एक पठनीय ही नहीं बल्कि संग्रहणीय पुस्तक है।... आगे पढ़ें »

  • हिन्दी प्रचारक पत्रिका, वाराणसी - श्री सुरेन्द्र वाजपयी

    राम-नाम तारक मंत्र काशी के महा शमशान पर ही प्राप्त होता है, जिससे जीव सदा-सर्वदा के लिये आवागमन से मुक्त हो जाता है।... आगे पढ़ें »

  • डा. कृष्ण देव अग्रवाल "अरविंद"
  • हम सब साथ साथ (मासिक पत्रिका, नई दिल्ली)
  • डा. सुज्ञान कुमार महान्ति
  • अनुराधा गोयल
  • प्रोफेसर जे.के. गोदियाल

    प्रस्तुत रचना अध्यात्म, संस्कृति, साहित्य, धर्म तथा समाज एवं उसकी प्रकृति को आत्मसात् किए हुऐ है, इसको किसी एक विधा से युक्त करना संभवतः उपयुक्त नहीं होगा।... आगे पढ़ें »

  • मदन लाल वर्मा 'क्रांत'

    तुलसीदास जी ने ‘‘रामचरित मानस‘‘ लिखना तब प्रारम्भ किया जब वे 76 वर्ष की आयु पार कर चुके थे उसके बाद भी वे 50 वर्ष तक जीवित रहें रामलीला के माध्यम से रामकथा को जन-जन तक पहुचातें रहे, यह कोई साधारण बात नहीं, काशी मरणान्मुक्ति के लेखक तो अभी युवा हैं।... आगे पढ़ें »

  • जनमेजय त्रिवेदी

    काशी विश्वनाथ की अनुपम व अनन्य कृपा लेखक पर बनी रही है अन्यथा इस प्रकार की चिंतन साधना विरले हीं नज़र आती है।... आगे पढ़ें »

  • राँची एक्सप्रेस

    एक उत्तम दार्शनिक उपन्यास । इस गद्यकाव्य की भाषा प्रतिपाद्य अर्थ को रहस्यात्मक शैली में व्यक्त करती है। उत्तम साहित्य के सृजन का श्रेय दोनों सिद्धहस्थ लेखकों को जाता है।... आगे पढ़ें »

  • अक्षरम संगोष्टी

    वास्तविकता तो यह है कि लेखकद्वय ने इस उपन्यास का जो ताना-बाना गढ़ा, जो कथानक रचा उसका उद्देष्य एक उपन्यास के लिख लेने मात्र से कहीं अधिक है।... आगे पढ़ें »

  • समावर्तन

    यह एक अनपेक्षित सी गाथा है- कथा है, जिसे प्रगति की प्रतिक इक्कीसवी सदी में दो युवा लेखकों की कलम से निःसृत होकर मुक्ति मिली है।... आगे पढ़ें »

  • अक्षरा

    काशी मरणान्मुक्ति नश्वर देह का अमृत शैव- दर्शन। हिन्दी में हजारी प्रसाद द्विवेदी की “बाण भट्ट की आत्म कथा” या ‘चारूचंद्र लेख‘ के मध्य युग को ‘पुनर्नवा करता यह उपन्यास उन अनेक ‘योगी‘ आत्मकथाओं को रूपाकार देता है जिन्हें कुछ प्रत्यक्ष प्रमाण और कुल लोग गल्प कहना पसंद करते है।... आगे पढ़ें »

  • प्रभु दयाल मिश्र

    नश्वर देह का अमृत शैव-दर्शन:- किसी पर्वतीय उद्याम धारा के समान प्रवहमान भाषा के वेग में संसार की सम्पूर्ण म्लानता को समेटकर संरचना का यदि कोई महा-सागर बने तो वह कृति ‘काशी मरणान्मुक्ति‘ होगी।... आगे पढ़ें »

  • परशुराम तिवारी
  • एस पी दुबे

    शिव तथा वैष्णव परम्पराओं का ऐसा सामासिक स्वरूप बिरला ही मिलता है। काशी के माध्यम से पूरे भारतीय धर्म स्थलों का इस प्रकार से पाठक भ्रमण करता है कि उसकी बार-बार केन्द्र से परिधि और परिधि से केन्द्र की मानसिक यात्रा सहज हो जाती है।... आगे पढ़ें »

  • विट्ठल राम साहू

    यह उपन्यास जितनी बार पढ़ा जाये एक नई ऊर्जा का संचार करती है। एक बार में तो मन हीं नहीं भरता इसे उपन्यास की तरह पठन नहीं वरन् एक सद्ग्रन्थ की तरह पढ़ने में परम आन्नद की अनुभूति होती है।... आगे पढ़ें »

  • भगवती शरण मिश्र

    502 पृष्ठों में विस्तृत इस महाग्रन्थ के आद्यन्त पठन के पश्चात यह उद्घोषित करने को बाध्य होना पड़ता है कि कई दृष्टियों से यह औपन्यासिक कृति हिन्दी भाषा एवं साहित्य के सिर का मुकुटमणि है।... आगे पढ़ें »

  • धर्मेन्द्र गोयल

    इस प्रकार की कहानी हमारे आज के युवावर्ग में धर्म के प्रति पुनः लौटने में सहायक होगी।... आगे पढ़ें »

  • राष्ट्रीय सहारा
  • हिन्दुस्तान

    प्रस्तुत उपन्यास में काशी के पौराणिक इतिहास से जुड़े अनेक संदर्भो की छांव में जीवन-मृत्यु के प्रश्नों को दार्शनिक भावभूमि से समझने का प्रयास किया गया है। उपन्यास की कथावस्तु अपने आप में गैर-पारंपरिक है और इससे गुजरते हुए इतिहास और वर्तमान की झलकियां एक साथ दिखती है।... आगे पढ़ें »

  • स्वतंत्र वार्ता

    इसे पौराणिक उपन्यास भी कहा जा सकता है और औपन्यासिक पुराण भी..... परन्तु कथानायक का पूरा जीवन इसमें होते हुऐ भी उसकी कथा बहुत सूक्ष्म सी है- एकार्थ काव्यों की तरह।... आगे पढ़ें »

  • सन्मार्ग

    ‘काशी मरणान्मुक्ति‘ में अध्यात्म के उन सोपानों की भी विशद चर्चा है, जिस पर से गुजरकर इस राह के पथिक ऊध्र्वाधार गति में यात्रा कर चरम तक पहुंचते है। परम कल्याणकारी शिव तथा शिवत्व की चर्चा तथा इस ज्ञान को हासिल करने वालों के लिए इस उपन्यास में काफी कुछ है, जो उनके नजरिये के लिए एक अलग द्वार भी खोलता है।... आगे पढ़ें »

  • लेजेंड न्यूज़

    प्रत्येक अध्याय का प्रारंभ शिव महिमा व अंत ‘‘ पर याद रख मैं तेरा गुरू नहीं‘‘ के साथ करना ये दर्शाता है कि लौकिकता से अलौकिकता की ओर चलते हुये किस प्रकार उपन्यास के नायक की भांति स्वयं के भीतर बैठे शिव से अपने गुरू के साथ एकात्म हुआ जा सकता है।... आगे पढ़ें »

  • सृजन गाथा
  • आचार्या गिरिराज किशोर

    हिन्दी जगत में इस प्रकार का उपन्यास पहली बार संभवतः मैं देख रहा हूँ जिसमें उन्होंने कृतित्व की प्रशंसा करते हुए इस संसार को बहुत कुछ दिया। ऐसे उपन्यास की कल्पना हिन्दी साहित्य में कम ही की जा सकती है।... आगे पढ़ें »

  • रमाकांत श्रीवास्तव